प्रातःकाल उठकर आत्महित की कामना से प्रातःस्मरण का पाठ करने से सर्वशक्तिमान् परमेश्वर में विश्वास, अपनी मातृभूमि और राष्ट्र के प्रति भक्ति और प्रेम, तथा अपने प्रतापी पूर्वजों के स्मरण से जगे आत्म-गौरव और स्वाभिमान के पवित्र भाव मन में आते हैं, जिसके कारण प्रफुल्लता, स्फूर्ति, दृढ़ता, उल्लास और उत्साह के साथ अपने कर्तव्य के पथ पर बढ़ता हुआ मनुष्य नयी–नयी सफलताएँ अवश्य प्राप्त करता है। दिन भर मन प्रसन्नता और उमंग से भरा रहता है।

कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती।
कर मूले तु गोविन्दः प्रभाते करदर्शनम् ॥१॥

लक्ष्मी-सरस्वती-नारायण प्रार्थना: प्रातःकाल उठते ही अपने दोनों हाथों को आपस में रगड़े तत्पश्चात अपने हाथों का दर्शन करते हुए इस श्लोक को दोहरायें।
अर्थ: हाथ (पुरुषार्थ का प्रतीक) के अग्र भाग में धन की देवी लक्ष्मी, मध्य में विद्या की देवी सरस्वती तथा मूल में गोविन्द (परमात्मा श्री कृष्ण) का वास होता है। प्रातः काल हाथों के दर्शन करें। ॥१॥

समुद्रवसने देविः पर्वतस्तनमण्डले।
विष्णुपत्निः नमस्तुभ्यं पादस्पर्शं क्षमस्व मे ॥२॥

पृथ्वी क्षमा प्रार्थना: भूमि पर चरण रखते समय इस श्लोक को दोहरायें।
अर्थ: समुद्ररूपी वस्त्रोवाली, जिसने पर्वतों को धारण किया हुआ है और विष्णु भगवान की पत्नी हैं, पृथ्वी देवी, तुम्हे नमस्कार करता हूँ, तुम्हे मेरे पैरों का स्पर्श होता है इसलिए क्षमायाचना करता हूँ।

ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी
भानुः शशीभूमिसुतो बुधश्च।
गुरुश्च शुक्रः शनिराहुकेतवः
कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम् ॥३॥

त्रिदेव एवं नवग्रह प्रार्थना:
अर्थ: तीनों देवता ब्रह्मा, विष्णु (राक्षस मुरा के शत्रु) एवं महेश (त्रिपुरासुर का अंत करने वाले) तथा सूर्य, चंद्रमा, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु एवं केतु यह सभी ग्रह एवं सभी देव मेरे प्रभात को शुभ एवं मंगलमय करें।

सनत्कुमारः सनकः सनन्दनः
सनातनोऽप्यासुरिपिङ्गलौ च।
सप्त स्वराः सप्त रसातलानि
कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम् ॥४॥

सप्त-ऋषि सप्त-रसातल सप्त-स्वर प्रार्थना:
अर्थ: ब्रह्मा के मानसपुत्र बाल ऋषि – सनत्कुमार, सनक, सनंदन, सनातन, सांख्य-दर्शन के प्रर्वतक कपिल मुनि के शिष्य – आसुरि और छन्दों का ज्ञान कराने वाले मुनि पिंगल- ये ऋषिगण; षड्ज, ऋषभ, गान्धार, मध्यम, पञ्चम, धैवत तथा निषाद- ये सप्त स्वर; अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, रसातल तथा पाताल- ये सात अधोलोक (पृथ्वी से नीचे स्थित); सभी मेरे प्रात:काल को मंगलमय करें।

सप्तार्णवाः सप्त कुलाचलाश्च
सप्तर्षयो द्वीपवनानि सप्त।
भूरादिकृत्वा भुवनानि सप्त
कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम् ॥५॥

सप्त-समुद्र सप्त-पर्वत सप्त-ऋषि सप्त-द्वीप सप्त-वन सप्त-भूवन प्रार्थना:
अर्थ: सप्त समुद्र (अर्थात भूमण्डल के लवणाब्धि, इक्षुसागर, सुरार्णव, आज्यसागर, दधिसमुद्र, क्षीरसागर और स्वादुजल रूपी सातों सलिल-तत्व), सप्त पर्वत (महेन्द्र, मलय, सह्याद्रि, शुक्तिमान्, ऋक्षवान, विन्ध्य और पारियात्र), सप्त ऋषि (कश्यप, अत्रि, भारद्वाज, गौतम, जमदग्नि, वशिष्ठ, और विश्वामित्र), सातों द्वीप (जम्बू, प्लक्ष, शाल्मली, कुश, क्रौच, शाक, और पुष्कर), सातों वन (दण्डकारण्य, खण्डकारण्य, चम्पकारण्य, वेदारण्य, नैमिषारण्य, ब्रह्मारण्य और धर्मारण्य), भूलोक आदि सातों भूवन (भूः, भुवः, स्वः, महः, जनः, तपः, और सत्य) सभी मेरे प्रभात को मंगलमय करें।

पृथ्वी सगन्धा सरसास्तथापः
स्पर्शी च वायुर्ज्वलनं च तेजः।
नभः सशब्दं महता सहैव
कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम् ॥६॥

पंच-तत्व प्रार्थना:
अर्थ: अपने गुणरूपी गंध से युक्त पृथ्वी, रस से युक्त जल, स्पर्श से युक्त वायु, ज्वलनशील तेज, तथा शब्द रूपी गुण से युक्त आकाश महत् तत्व बुद्धि के साथ मेरे प्रभात को मंगलमय करें अर्थात पांचों बुद्धि-तत्व कल्याणकारी हों।

प्रातः स्मरणमेतद्यो विदित्वादरतः पठेत्।
स सम्यक् धर्मनिष्ठः संस्मृताखण्ड भारतः ॥७॥

अर्थ:
इस प्रातः स्मरण को जो व्यक्ति समझकर और आदरपूर्वक पाठ करेगा, वह अखण्ड भारत की स्मृति मन में संजोए हुए, अपने धर्म एवं कर्तव्य के प्रति सदैव निष्ठावान और प्रमाणिक बना रहेगा।

One Comment

  1. सुदीप शर्मा August 14, 2025 at 1:53 pm - Reply

    अच्छा है! वैदिक सद्गुरु हमें हमारी जड़ों से जोड़ रहे हैं।

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